भारत-पाकिस्तान समझौते: सिंधु जल संधि से शिमला समझौते तक, क्यों जरूरी होती हैं अंतरराष्ट्रीय संधियां?

भारत और पाकिस्तान के बीच प्रमुख संधियां: कारण और असर”

“सिंधु जल संधि स्थगित: भारत-पाक समझौतों की पूरी जानकारी”

“भारत के अंतरराष्ट्रीय समझौते: क्यों पड़ती है संधियों की जरूरत

हाल ही में पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ सख्त रुख अपनाया है। सिंधु जल समझौता स्थगित करने के बाद अब पाकिस्तान ने शिमला समझौते को खत्म करने की धमकी दी है। यह घटनाक्रम केवल भारत-पाकिस्तान संबंधों तक सीमित नहीं है, बल्कि वैश्विक कूटनीति और अंतरराष्ट्रीय समझौतों की जरूरत और संवेदनशीलता को भी सामने लाता है।

इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि भारत को किन-किन देशों के साथ संधियों की जरूरत पड़ी, क्यों ये संधियां की जाती हैं, और जब हालात बिगड़ते हैं तो इनका क्या असर होता है।


🔍 क्यों पड़ती है संधियों की जरूरत?

संधि या एग्रीमेंट करना केवल राजनयिक औपचारिकता नहीं है, यह किसी भी देश की विदेश नीति का मूल स्तंभ है।
यह समझौतें होते हैं:

  • राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए
  • शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए
  • सीमा विवादों या पानी जैसे संसाधनों के बंटवारे को लेकर
  • सैन्य या व्यापारिक सहयोग के लिए
  • और कई बार तनावपूर्ण संबंधों को संभालने के लिए भी

चाहे कोई देश सुपरपावर हो या विकासशील, उसे अन्य देशों के साथ मिलकर चलना पड़ता है। संधियां इसी आपसी समझ और भरोसे का आधार होती हैं।


🇮🇳 भारत और पाकिस्तान के बीच हुए प्रमुख समझौते

1. सिंधु जल संधि (1960)

भारत और पाकिस्तान के बीच जल बंटवारे को लेकर की गई ऐतिहासिक संधि।

  • भारत को रावी, ब्यास, सतलुज
  • पाकिस्तान को सिंधु, झेलम, चेनाब
    भारत ने हाल ही में इस संधि को स्थगित करने का फैसला लिया है।

2. ताशकंद समझौता (1966)

भारत-पाक युद्ध (1965) के बाद शांति स्थापना के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के बीच हुआ।

3. शिमला समझौता (1972)

1971 के युद्ध के बाद इंदिरा गांधी और जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच हुआ। इसमें यह तय हुआ कि दोनों देश आपसी मुद्दों को द्विपक्षीय रूप से सुलझाएंगे। आज पाकिस्तान इस समझौते को रद करने की धमकी दे रहा है।


🌍 भारत के अन्य देशों के साथ प्रमुख संधियां

भारत केवल पाकिस्तान ही नहीं, बल्कि दुनिया के कई देशों के साथ भी महत्वपूर्ण समझौते कर चुका है:

  • भारत-अमेरिका न्यूक्लियर डील (2008)
  • भारत-रूस रक्षा सहयोग समझौते
  • भारत-बांग्लादेश जल और सीमा समझौते
  • भारत-नेपाल शांति और मैत्री संधि (1950)
  • भारत-भूटान विशेष संबंध समझौते

⚠️ जब संधियों को तोड़ने की नौबत आती है…

  • भरोसे में दरार आती है
  • अंतरराष्ट्रीय मंच पर छवि प्रभावित होती है
  • कूटनीतिक रिश्ते और व्यापार पर असर पड़ता है
  • कभी-कभी यह युद्ध जैसे हालात भी पैदा कर सकता है

भारत ने सिंधु जल संधि को स्थगित कर ये संकेत दिया है कि अब आतंक और बातचीत साथ-साथ नहीं चल सकते


भारत का हालिया कदम केवल एक रणनीतिक चेतावनी नहीं है, बल्कि यह वैश्विक कूटनीति में एक मजबूत और आत्मनिर्भर राष्ट्र की भूमिका को दर्शाता है। संधियां तभी तक उपयोगी होती हैं जब दोनों पक्ष उनका सम्मान करें। लेकिन अगर एक पक्ष आतंक का समर्थन करे, तो ऐसी संधियों का भविष्य भी खतरे में पड़ जाता है।

भारत ने समय-समय पर अपने पड़ोसी और वैश्विक देशों के साथ अनेक महत्वपूर्ण समझौते किए हैं। 1965 के भारत-पाक युद्ध के बाद ताशकंद समझौता हुआ, जिसमें युद्धविराम और कब्जे वाले क्षेत्रों को लौटाने की बात हुई। इसके बाद 1971 के युद्ध में बांग्लादेश का निर्माण हुआ, और भारत-पाक के बीच शिमला समझौता हुआ, जिसमें शांतिपूर्ण तरीके से विवाद सुलझाने की सहमति बनी। आज पाकिस्तान इस समझौते को तोड़ने की धमकी दे रहा है।

भारत ने बांग्लादेश और भूटान के साथ भी मैत्री संधियाँ की हैं, जिनमें संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने का वादा है। भूटान के साथ जलविद्युत परियोजनाओं में सहयोग है। वहीं बांग्लादेश के साथ गंगा जल बंटवारा संधि और 2015 में भूमि सीमा समझौता हुआ, जिसमें दोनों देशों ने एनक्लेव्स का आदान-प्रदान किया।

चीन के साथ भारत ने 1954 में पंचशील समझौता किया, जिसमें आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने की बात थी। 1993 में सीमा विवाद को शांत करने के लिए शांति और ट्रैंक्विलिटी समझौता हुआ, लेकिन वह पूरी तरह सफल नहीं रहा।

रूस भारत का पुराना मित्र रहा है। 1971 में भारत-सोवियत मित्रता संधि और 2000 में रणनीतिक साझेदारी समझौता हुआ, जिससे रक्षा, विज्ञान और आर्थिक संबंध मजबूत हुए।

अमेरिका के साथ भारत ने असैन्य परमाणु समझौता किया, जिससे भारत को न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप के नियमों से छूट मिली। साथ ही लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज समझौता और रक्षा टेक्नोलॉजी में भी सहयोग हुआ।

यूरोपीय यूनियन (EU) के साथ भारत ने 1994 में सहयोग समझौता किया और 2004 में रणनीतिक साझेदारी, जिससे व्यापार, विज्ञान और सांस्कृतिक संबंधों को बल मिला।

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