Gunahon Ka Devta Book pdf गुनाहों का देवता पूरी जानकारी

गुनाहों का देवता धर्मवीर भारती द्वारा लिखित हिंदी साहित्य की एक कालजयी कृति है। यह उपन्यास पहली बार 1949 में प्रकाशित हुआ और आज भी इसे हिंदी साहित्य का एक अनमोल रत्न माना जाता है। इस पुस्तक में प्रेम, त्याग, आदर्श, और संघर्ष की गहराइयों को बेहद संवेदनशीलता और काव्यात्मक शैली में प्रस्तुत किया गया है।

पुस्तक का सारांश:

यह कहानी इलाहाबाद के पृष्ठभूमि में आधारित है और मुख्यतः चार पात्रों – चंद्रकांत (चंदर), सुधा, बनवारीलाल (पम्मी), और बिनती के इर्द-गिर्द घूमती है।

  • चंदर एक प्रतिभाशाली और संवेदनशील युवक है, जो सुधा के परिवार के बेहद करीब है। सुधा एक चुलबुली, मासूम, और जीवन से भरी युवती है, जो चंदर से बेहद प्रेम करती है।
  • चंदर सुधा को अपनी छोटी बहन या मित्र की तरह देखता है और उसके प्रति अपने गहरे भावनात्मक जुड़ाव को “पवित्र प्रेम” समझता है।
  • सुधा की शादी एक ऐसे व्यक्ति से कर दी जाती है जिसे वह पसंद नहीं करती। चंदर अपनी भावनाओं को समझने और उनसे जूझने में देर कर देता है।

कहानी में सुधा का दुख, चंदर का पछतावा, और समाज द्वारा बनाए गए नियमों और आदर्शों की क्रूरता को भावपूर्ण ढंग से चित्रित किया गया है। यह प्रेम कहानी हृदय को छूने वाली और पाठकों को सोचने पर मजबूर करने वाली है।


मुख्य विषय:

  1. प्रेम और त्याग:
    कहानी में प्रेम को केवल व्यक्तिगत स्तर पर नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और सामाजिक पहलुओं से भी देखा गया है। सुधा और चंदर के प्रेम में त्याग और बलिदान की भावना है।
  2. समाज के नियम और बंधन:
    सुधा और चंदर के रिश्ते पर समाज की सीमाएँ और परंपराएँ हावी हैं। यह उपन्यास उस दौर के भारतीय समाज की संरचना और स्त्री-पुरुष संबंधों की जटिलता को उजागर करता है।
  3. आत्मसंघर्ष:
    चंदर का अपनी भावनाओं और समाज के प्रति कर्तव्यों के बीच का संघर्ष पुस्तक का केंद्रीय तत्व है।

शैली और भाषा:

धर्मवीर भारती की लेखन शैली बेहद संवेदनशील, काव्यात्मक और भावपूर्ण है। पुस्तक की भाषा सरल लेकिन प्रभावशाली है, जो पाठक के दिल में सीधे उतरती है। उनके संवाद, प्रकृति का वर्णन, और पात्रों के मनोवैज्ञानिक चित्रण ने इस उपन्यास को हिंदी साहित्य का अमूल्य धरोहर बना दिया है।


पुस्तक का महत्व:

  • यह केवल एक प्रेम कहानी नहीं है, बल्कि समाज के नियमों, व्यक्तिगत भावनाओं, और आत्मा की पुकार को समझने का एक माध्यम है।
  • इसे पढ़ने के बाद पाठक न केवल प्रेम और त्याग की गहराइयों में डूबता है, बल्कि अपने जीवन के आदर्शों और प्राथमिकताओं पर भी विचार करता है।

पुस्तक की आलोचना:

  • कुछ पाठकों को चंदर का स्वार्थी और कमजोर चरित्र लग सकता है। वह सुधा की भावनाओं को समझने और समय पर निर्णय लेने में असमर्थ है।
  • सुधा की स्थिति और उसकी नियति समाज में महिलाओं की भूमिका और उनकी सीमाओं पर सवाल उठाती है।

“गुनाहों का देवता” प्रेम और आदर्शों की गाथा है, जो पाठकों को मानवीय संबंधों की गहराई और समाज के आदर्शों की सीमाओं पर सोचने के लिए मजबूर करती है। यदि आप प्रेम, त्याग, और समाज के नियमों के संघर्ष की एक मार्मिक कथा पढ़ना चाहते हैं, तो यह उपन्यास आपके लिए अवश्य पढ़ने योग्य है।

रेटिंग: 🌟🌟🌟🌟🌟 (5/5)

सुझाव: यह उपन्यास उन पाठकों के लिए है जो साहित्य को गहराई से समझने और महसूस करने की क्षमता रखते हैं।

अगर पुराने जमाने की नगर-देवता की और ग्राम-देवता की कल्पनाएँ आज भी मान्य होती तो मैं कहता कि इलाहाबाद का नगर-देवता जरूर कोई रोमैण्टिक कालाकार है। ऐसा लगता है कि इस शहर की बनावट, गठन, जिंदगी और रहन-सहन में कोई बंधे बंधाचे नियम नहीं, कही कोई कसाव नहीं. हर जगह एक स्वच्छन्द खुलाव, एक बिखरी हुई-सी अनियमितता। बनारस की गलियों से भी पतली गलियों और लखनऊ की सड़कों से चौड़ी सड़कें। यार्कशायर और बाइटन के उपनगरी मुकाबला करने वाले सिविल लाइन्स और दलदलों की गन्दगी की मात करने वाले मुहल्ले। मौसम में भी कही कोई सम नहीं, कोई सन्तुलन नहीं। सुबहें मलयजी, दोपहरें अंगारी, ती शामें रेशमी धरती ऐसी कि सहारा के रेगिस्तान की तरह बालू भी मिले, मालवा की तरह हरे-भरे खेत भी मिले और ऊसर और परती की भी कमी नहीं।

सचमुच लगता है कि प्रयाग का नगर-देवता स्वर्ग-कुंजी से निर्वासिल कोई मनमौजी कलाकार है जिसके सूजन में हर रंग के डोरे हैं। और चाहे जो हो, मगर इधर क्वार, कार्तिक तथा उधर वसन्त के बाद और होली के बीच के मौसम से इलाहाबाद का वातावरण नैस्टर्शियम और पैजी के फूलों से भी ज्यादा खूबसूरत और आम के बौरी की खुशबू से भी ज्यादा महकदार होता है। सिविल लाइन्स ही या आल्फ्रेड पार्क, गंगातट हो या खुसस्थाग, लगता है कि हवा एक नटखट दोशीजा की तरह कलियों के आँचल और लहरों के मिजाज से छेडखानी करती चलती है। और अगर आप सर्दी से बहुत नहीं डरते तो आप जरा एक ओवरकोट डालकर सुबह-सुबह घूमने निकल जाएँ तो इन खुली हुई जगही की फिर्जी इठलाकर आपको अपने जादू में बाँध लेगी। खासतौर से पौ फटने के पहले तो आपको एक बिल्कुार नयी अनुभूति होगी।

वसन्त के नये-नये मौसमी फूलों के रंग से मुकाबला करने वाली हल्की सुनहली, बाल-सूर्य की अंगुलियों सुबह की राजकुमारी के गुलाबी वक्ष पर बिखरे हुए औराले गेसुओं को धीरे-धीरे हटाली जाती है और क्षितिज पर सुनहली तरुणाई बिखर पड़ती है। एक ऐसी ही खुशनुमा सुबह थी. और जिसकी कहानी मैं कहने जा रहा हूँ. वह सुबह से भी ज्यादा मासूम युवक, प्रभाती गाकर फूलों को जगाने वाले देवदूत की तरह अल्फ्रेड पार्क के लॉन पर फूलों की सरजमी के किनारे-किनारे घूम रहा था। कल्यई स्वीटपी के रंग का पश्मीने का लम्बा कोट, जिसका एक कालर उठा हुआ था और दूसरे कालर में सरो की एक पत्ती बटन होल में लगी हुई थी, सफेद मक्खन जीन की पतली पैंट और पैरों में सफेद जरी की पेशावरी सैण्डिले, भरा हुआ गोरा चेहरा और ऊंचे चमकते हुए माये पर झूलती हुई एक रूखी भूरी लट। चलते-चलते उसने एक रंग-बिरंगा गुच्छा इक्ट्ठा कर लिया था और रह-रह कर वह उसे सूध लेता था। पूरब के आसमान की गुलाबी पाँखुरियों बिखरने लगी थी और सुनहले पराग की एक बौछार सुबह के ताजे फूली पर बिक रही थी। “अरे सुबह हो गयी?” उसने चौंककर कहा और पास की एक बंध पर बैठ गया। सामने से एक माली आ रहा था। क्यों जी, लाइब्रेरी खुल गयी?” “अभी नहीं बाबूजी।” उसने जवाब दिया। वह फिर सन्तोष से बैठ गया और फूलों की पाँवरियों नौचकर नीचे फेंकने लगा।

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