ब्लॉग शीर्षक: गन्ने की खोई से हरित हाइड्रोजन: आईआईटी बीएचयू की नई खोज से स्वच्छ ऊर्जा की ओर एक कदम
भारत में गन्ना एक प्रमुख फसल है, और इसके उत्पादन के बाद बड़ी मात्रा में बायोवेस्ट यानी गन्ने की खोई निकलती है। अक्सर यह कचरे के रूप में जलाई जाती है या बेकार छोड़ दी जाती है, जिससे पर्यावरण पर नकारात्मक असर पड़ता है। लेकिन अब इस खोई का उपयोग स्वच्छ और सस्ती ऊर्जा के उत्पादन के लिए किया जा सकता है। बनारस स्थित आईआईटी बीएचयू के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी नई और पर्यावरण-अनुकूल तकनीक विकसित की है जिससे गन्ने की खोई से हरित हाइड्रोजन बनाई जा सकती है।
क्या है यह तकनीक?
शोधकर्ताओं ने एक विशेष प्रक्रिया विकसित की है जिसे डार्क फर्मेंटेशन (Dark Fermentation) कहा जाता है। इस प्रक्रिया में एक विशेष प्रकार के जीवाणु (बैक्टीरिया) का उपयोग किया जाता है जो गन्ने की खोई को हाइड्रोजन गैस में बदल देता है। यह जीवाणु वैज्ञानिकों को सीवेज कचरे से प्राप्त हुआ है, और इसे इस तरह प्रशिक्षित किया गया है कि यह जैविक अपशिष्ट को ऊर्जा में बदल सके।
डार्क फर्मेंटेशन: बिना रोशनी के ऊर्जा उत्पादन
इस प्रक्रिया की खासियत यह है कि इसमें सूरज की रोशनी की जरूरत नहीं होती, यानी यह प्रक्रिया अंधेरे में भी प्रभावी तरीके से कार्य करती है। इस जीवाणु की मदद से सिर्फ हाइड्रोजन ही नहीं, बल्कि पर्यावरण-अनुकूल बायोपॉलिमर (जैविक प्लास्टिक जैसे पदार्थ) भी बनाए जा सकते हैं।
आईआईटी बीएचयू की पहल और पेटेंट प्रक्रिया
इस महत्वपूर्ण खोज के लिए आईआईटी बीएचयू के वैज्ञानिकों ने पेटेंट भी फाइल किया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह तकनीक पूरी तरह से स्वदेशी और अभिनव (innovative) है। प्रोफेसर आभा मिश्रा के नेतृत्व में यह शोध किया गया है जो लंबे समय से पर्यावरण-अनुकूल तकनीकों पर कार्य कर रही हैं।
यूपी जैसे गन्ना उत्पादक राज्य के लिए वरदान
उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा गन्ना उत्पादक राज्य है। यहां हर साल लाखों टन गन्ने की खोई निकलती है, जो अब तक बेकार मानी जाती थी। अगर इस तकनीक को बड़े स्तर पर अपनाया जाए, तो यह न केवल स्वच्छ ऊर्जा के उत्पादन में मदद करेगी, बल्कि किसानों और उद्योगों को अतिरिक्त आय का स्रोत भी दे सकती है। इससे कचरा प्रबंधन भी बेहतर होगा और ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में भी कमी आएगी।
हरित हाइड्रोजन क्यों है महत्वपूर्ण?
हरित हाइड्रोजन को ऊर्जा का भविष्य कहा जा रहा है क्योंकि यह:
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शून्य कार्बन उत्सर्जन करती है
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जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता कम करती है
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वाहनों, उद्योगों और बिजली उत्पादन में इस्तेमाल हो सकती है
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बैटरी की तुलना में अधिक कुशल होती है
इसलिए दुनिया भर में हरित हाइड्रोजन पर तेजी से शोध और निवेश हो रहा है।
बायोपॉलिमर: प्लास्टिक का पर्यावरण-मित्र विकल्प
इस तकनीक से बनने वाले बायोपॉलिमर भी बेहद महत्वपूर्ण हैं। पारंपरिक प्लास्टिक पर्यावरण के लिए घातक होता है, जबकि बायोपॉलिमर बायोडिग्रेडेबल होते हैं और आसानी से नष्ट हो जाते हैं। इससे प्लास्टिक प्रदूषण कम करने में मदद मिलेगी।
आर्थिक और पर्यावरणीय लाभ
इस तकनीक से जुड़े कुछ मुख्य लाभ:
गन्ने की खोई का उपयोग,
हाइड्रोजन और बायोपॉलिमर दोनों का उत्पादन,
किसानों के लिए अतिरिक्त आय,
स्थानीय उद्योगों को सस्ती ऊर्जा,
पर्यावरण प्रदूषण में कमी,
कार्बन फुटप्रिंट में गिरावट,
आईआईटी बीएचयू की यह नई खोज सिर्फ एक तकनीकी उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह भारत के ऊर्जा क्षेत्र में एक क्रांति ला सकती है। गन्ने की खोई जैसे कृषि अपशिष्ट से स्वच्छ और हरित हाइड्रोजन बनाना पर्यावरण और अर्थव्यवस्था दोनों के लिए फायदेमंद है। अगर इस तकनीक को नीतिगत समर्थन और निवेश मिले, तो भारत हरित ऊर्जा उत्पादन में दुनिया का अग्रणी देश बन सकता है।