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आज से नहीं होंगे विवाह, गृहप्रवेश जैसे मांगलिक कार्य, भगवान विष्णु गए योगनिद्रा में

आज से चार महीने तक नहीं होंगे विवाह, संस्कार और गृहप्रवेश जैसे मांगलिक कार्य , भगवान विष्णु छह जुलाई से जाएंगे चार महीने के लिए योग निद्रा में, अब कार्तिक शुक्ल एकादशी पर जागृत होंगे देव

 

वाराणसी। आषाढ़ शुक्ल पक्ष एकादशी पर भगवान विष्णु चार मास के शयन पर चले जाएंगे। इसके साथ ही चातुर्मास की शुरुआत हो जाएगी और चार महीने तक विवाह, संस्कार और गृहप्रवेश जैसे मांगलिक कार्यों पर विराम लग जाएगा। पुराणों के अनुसार इन चार महीनों में सृष्टि का संचालन भगवान शंकर करते हैं। चातुर्मास की यह अवधि दो नवंबर को कार्तिक शुक्लपक्ष एकादशी यानी देव प्रबोधिनी एकादशी को श्रीहरि के योग निद्रा से जागने पर समाप्त होगी।

काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास के पूर्व सदस्य पं. दीपक मालवीय के अनुसार हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस बार देवशयनी एकादशी साध्य और शुभयोग में मनाई जाएगी। आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी छह जुलाई को रात्रि 9:16 बजे तक रहेगी। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशी का पुराणों में वर्णन आता है। इस दिन से भगवान विष्णु विश्राम करते हैं और पूरी सृष्टि का कार्यभार भगवान शिव को सौंप देते हैं। इसी वजह से चातुर्मास के दौरान भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व है। इस अवधि में तपस्या, योग, मंत्र जाप और धार्मिक अनुष्ठान करने से दोगुना पुण्य फल की प्राप्ति होती है। हरिशयन को कहा गया है योगनिद्रा

चातुर्मास में यज्ञोपवीत संस्कार, विवाह, दीक्षाग्रहण, यज्ञ, गृहप्रवेश, गोदान, प्रतिष्ठा एवं जितने भी शुभ कर्म हैं, वे सभी त्याज्य होते हैं। भविष्य पुराण, पद्म पुराण तथा श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार हरिशयन को योगनिद्रा कहा गया है।

सूर्य के मिथुन राशि में आने पर यह एकादशी आती है और इसी दिन से चातुर्मास का आरंभ माना जाता है। इस दिन से भगवान श्रीहरि विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं और फिर लगभग चार माह बाद तुला राशि में सूर्य के जाने पर उन्हें उठाया जाता है। उस दिन को देवोत्थानी एकादशी कहा जाता है। इस बीच के अंतराल को ही चातुर्मास कहा गया है। देवशयनी एकादशी को उपवास करने से पापों से मिलती है मुक्ति

देवशयनी एकादशी को सौभाग्य की एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पद्म पुराण के अनुसार इस दिन उपवास करने से जानबूझकर या अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति मिलती है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार देवशयनी एकादशी का व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

शास्त्रों के अनुसार चातुर्मास में संस्कारों का आदेश नहीं है। इस अवधि में पूजा, अनुष्ठान, घर या कार्यालय की मरम्मत, गृह प्रवेश, ऑटोमोबाइल खरीद और आभूषण की खरीद की जा सकती है। चातुर्मास की अवधि में अपने परिवार के अतिरिक्त कुछ भी ग्रहण करने से बचना चाहिए। इस में तेल, शहद, मूली, परवल, बैंगन व साग-पात नहीं ग्रहण करने चाहिए।

वरतें सावधानी अवधि में गुड़,

ऐसे करें पूजन व व्रत

सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और पीले कपड़े पहनें। विष्णु को पीले वस्त्र, पीले फूल, फल, मिठाई, धूप, दीप और तुलसी आदि अर्पित करें। ऊं नमो भगवते वासुदेवाय… मंत्र का 108 बार जाप करें। व्रत कथा का पाठ करें या सुनें। व्रत का संकल्प परहेज करें। इस दिन भूलकर भी चावल का सेवन न करें।

लें और श्रद्धा अनुसार व्रत का पारण करें। ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को दान-दक्षिणा दें। तामसिक चीजों से

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